## ठण्ड का प्रकोप
कोहरे की घनी छाँव से,
स्थिर हुआ जीवन।
शिशिर की अगुवायी से
सिहर रहा तन- मन।।
ओस की बूंदों से,
नम हुआ मौसम।
शीत के आवेश से
निकल रहा है दम।।
ठण्ड की चपेट से,
घबराया चमन।
शर्दी की मार से,
मुरझाया उपवन।।
ठण्ड के प्रकोप से,
हो रही अड़चन।
खुले में बाहर जाने से ,
हो रही उलझन।।
प्रेयसी के साथ को,
हो रहा व्याकुल मन।
कपकपाती इक लहर
बुझा रही अगन।।
कम्बल- रजाई ओढ़ने को ,
चाह रहा बदन।
कानों को छूते हर झोके से ,
होती धीमी गुंजन।।
जाड़े से असहाय हाथ भी
कर रहे मर्दन।
यादों का शिथिल सिलसिला,
जैसे धुंधला हो दर्पन।।
- ज्योतिपुरुष
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